Thursday, February 12, 2015

जनता पर बोझ कम करें

मैं बार बार इस ओर ध्यान आकृष्ट करता हूॅ कि भारतिय संविधान में संशोधन होना चाहिये।
आपसब लोग जरा गम्भीरता से विचार करेंगें तो विदित होगा कि संविधान की सारी व्यवस्था नेताओं को पालने पोसने और उनके सुरक्षा के इर्द गीर्द घुमती नजर आवेगी।जितने ज्यादा नेता,उतनी ज्यादा उनकी सुरक्षा,उतना ज्यादा खर्च,।केन्द्र में सरकार रहे,सारे विधान सभा,ग्राम सभा,जिला परिषद को समाप्त कर दिया जाय,सरकार का शासन,सचिवालयों के द्वारा IAS सचिवो के माध्यम से चलाया जाय,सरकारी कर्मचारियों की सुविधा में  बृद्घि कर ,उनकी कार्यकुशलता को बढ़ाया जाय,पुरे देश में एक नियम,एक शासन रहे,तो सोचिये हम आप कितने चैन से जी सकेंगें।वैसे भी जगह जगह नेता खड़ा करने से क्या लाभ है,इसका लाभ राजनितिक पार्टीयों  को ही ज्यादा मीलता है,वे इस व्यवस्था का लाभ अपने लोगों को तुष्ट करने के लिये करते हैं।
इस दिशा में विचार कर बहस बढ़ाने की आवश्यकता है।जनता का पैसा जनता के काम आवे इसके लिये,फालतू व्यवस्था को समाप्त करना ही होगा।

Wednesday, February 11, 2015

आप मतदाता हैं

यहॉ पर मेरा मतलब "आप"पार्टी से नहीं बल्कि भारत के मतदाता से है।इस बार दिल्ली चुनाव में मतदाता ने अपने वास्तविक स्वरुप का पहचान कराया है।मैं कोई पार्टी का समर्थक नहीं हूॅ,फिर भी मुझे एक बार भाजपा के सफाये पर दु:ख हुआ,लगा ऐसे निर्णय से,काम करने वाले मोदी जी निराश हो जायेंगे,लेकिन बाद में विचार किया तो पता चला कि,दिल्ली की जनता ने मोदी जी की बात को ही माना है,उन्होंने ही कहा था " जिसको जो काम करने आता है,उसे वह काम दिजीये "
दिल्ली की जनता के नजर  में केजरीवाल दिल्ली में शासन करने के लिये,उपयुक्त व्यक्ति दिखे,उसने उन्हें चुन  दिया।केन्द्र और भारत क् लिये मोदी जी हैं ही,एक अच्छायी जो केजरीवाल में है,उसे कोइ नकार भी नहीं सकता है,वह यह कि उन्होंने मोदी के किसी काम का बिरोध नहीं किया ।मेरा भी मानना है कि जब सब भारत के कल्याण का दावा करते हैं,तो विरोघ कैसा ।यह कहना कि दिल्ली के चुनाव परिणाम,देश को प्रभावित करेंगें ,गलत है,हर प्रान्त में केजरीवाल पैदा नहीं हो सकता,हर प्रान्त में मोदी भी पैदा नहीं हो सकता,मतदाता ये जान चुका है कि,पार्टीयों के कार्यकर्ता केवल उतनी दूर तक ही संयमित रहते हैं,जहॉ तक उसके नेता की नीगाहें पहूॅच पाती हैं,ऑखो से एओझल होते ही,उनकी हरकतें,क्लासरुम में पीछे के बेंच पर बैठे छात्र की भॉती हो जाती है,जो क्लास में रहता जरुर है,लेकिन सुनता समझता कुछ नहीं,अगर ऐसा न हुआ होता ,,तो अमीतशाह की योजनानुसार दिल्ली का हर मतदाता,भाजपा कार्यकर्ता के सम्पर्क में होता। एक बात जो समझने लायक है,वह यह कि न तो मोदी जादूगर हैं,न केजरीवाल मतदाता जानता है या यों कहें कि अब जान गया है कि,सब हाथ की सफाई दिखलाने वाले हैं,जब तमाशा ही देखना है तो स्थिर सरकार का तमाशा क्यों न देखें,
मोदी जी को अपने हर कार्यकर्ता को मोदी बनाना होगा
और केजरीवाल को हर कार्यकर्ता को केजरीवाल
अन्यथा मतदाता तू नहीं और सही,और नहीं और सही का रास्ता पकड़ चुका है,बहुमत देकर ही सरकार बनवावेगा चाहे कोई विकल्प बन जाय।

Monday, February 9, 2015

मॉ के बिना कोई नहींं

प्रकृति का नियम है
मॉ के बिना ईस धरती पर
कोई योनी जन्म ले ही नहीं सकती
प्रत्येक पुत्र,अथवा पुत्री को अपनी मॉ प्यारी होती है
काश ईस बात को हम समझ सकते कि,दुसरे की मॉ की ईज्जत करने, उसका सम्मान करके हम उस व्यक्ति को भावनात्मक शांति प्रदान कर सकते हैां।
पुरुषों और स्त्रियों के मामले में अलग नजरीया है,एक ओर पुरुष अपनी पत्नि के मॉ को सम्मान देकर उसके प्यार को जीतना चाहता है,दुसरी ओर अगर वही पत्नि जब उसके मॉ की उपेक्षा करती है तो वह उसे समझाने से भी डरता है कि,कहीं वह नाराज होकर घर में अशांति न पैदा कर दे।
स्त्रियॉ ये भूल जाती हैं कि उन्हें अपने जीवन में हर रंग से गुजरना है,
हर वो दर्द जो दूसरे को दो रही है,
कल सूद ब्याज सहीत उसे खुद भी मीलने वाला है
हम क्षणीक दु:ख,और क्षणीक गलतव्यवहारों के चलते,अपने पुत्र और पुत्रियों में,बगावत के बीज बोने लगते हैं,जो कल को हमारे लिये घातक तो होते ही हैं,उन बच्चों की जिन्दगी को भी अशान्त बना देते हैं,
गल्ती गल्ति होती है,चाहे वह जानबूझकर की जाय अथवा अन्जाने में
दोनो गल्ती हृदय की गहराईयों को इस कदर बेचैन करती है,कि हम किसी से कह भी नहीं सकते
यही चुप्पी सीधे हृदय पर आघात करती है,और डाक्टर से लेकर घर वालों तक को परेशान करती है
इसलिये समय मीले या न मीले लेकिन हो सके तो किसी का दिल नहीं दुखाना
बीमारी का दर्द दूर करने की ढेरों दवाईयॉ हैें,लेकिन भावनात्मक चोट का कोई प्राथमीक उपचार भी नहीं हैं।

Friday, February 6, 2015

धीरज,धर्म

धीरज ,धरम,मित्र,अरु नारी
आपत काल परख इम चारी
तुलसीदास ने अपनी इस चौपाई में एक संदेश दिया था,कि
आपत्तिकाल मं इन चारों की पहचान हो जाती है,
आपत्तिकाल में आपका धीरज यानी संयम
आपका धर्म,यानी आपके समाज के प्रति,राष्ट्र के प्रति,आपका दायित्व
आपके सुसंगत,वा कुसंगत मित्र
तथा आपकी  पत्नि का स्वभाव
मेरा मानना है कि ,बाकी की दो चीजें,मित्र और नारी,ये बाहरी पर्यावरण से प्राप्त होते है
लेकिन आपतकाल में जो व्यक्ति, धीरज और धरम को बचाये रखता है,
उसके सामने काल को भी नतमस्तक हो जाना पड़ता है
जब ये जग जाहीर है,कि हस्ताक्षर,और स्वभाव नहीं बदलते हैं,तब मित्र और नारी को परखने की क्या आवश्यकता है
परखना है तो खुद को
और परखना भी क्या
बस एक सार्थक एवं धनात्मक सोच के साथ अपने धीरज और धरम को बनाये रखना है
धीरज और धर्म की प्रेरणा का स्रोत गीता है,जहॉ हमें कर्म करने,और फल की आशा न करने को बताया गया है,काम करते जाना, धीरज की पराकाष्टा है
और धर्म ?
धर्म वह नहीं है,जिसके लिये हम शशड़ते हैं,
बल्कि धर्म वह है, जिसे करने के लिये मानव योनि में जन्म मीला है।जिसे करने से साधारण लोग भागते हैं,और विशिष्ट लोग उसमें लगे रहते हैं।

Thursday, February 5, 2015

कमाई भीख की,खर्चा शाहनशाहके

कोई भी राजनैतिक पार्टा के पास,चन्दा छोड़कर कमाई का कोई जरीया नहीं है।
जाहिर है ,जब भगवान को एक किलो लड्डू चढ़ाकर,भक्त लाखों की आशा रखते हैं,तो करोड़ों का चन्दा देकर,अरबों की आशा रखते हैं तो बुरा क्या है।
जागरुक जनता,चुनाव आयोग,किसी को इस बात की चिन्ता नहीं है कि चुनाव की प्रक्रिया और व्यवस्था को इतना  आसान और कठोर बना दिया जाय कि इस सब की कोई जरुरत न रहे।
पार्टायॉ उत्पादन के अवसर बढ़ाकरस्वयं लाभ क्यों नहीं कमाती हैं,उसी लाभ से वह अपना खर्च चलाती,अपने कार्यकर्ताओं को स्थाई नौकरी प्रदान करती,ताकी उनको अपना जीवनयापन करने के लिये,जनता की और नेता की न तो दलाली करनी पड़ती,ना किसी को ठगना पड़ता
अपने बल पर चुनाव लड़ना,अपने  खर्च पर देश भक्ति का दावा अगर कोई पार्टी कर सकती है,तो माना जा सकता है कि।इनमें कुध करने का जज्बा है
अन्यथा इनमें और हफ्ता वसुल कर सुरक्षी देने वाले रंगबाजों में अन्तर क्याहै

माया जाल

मै भारत की किस नम्बर का नागरिक हूॅ,कह नहीं सकता,लेकिन इस बात का आभास है कि,भारत के राष्ट्रपति को,प्रथम नागरिक कहा जाता है,जब किसी को एक नम्बर मील गया तो मेरा भी कोइ नम्बर होगा ही ऐसा मेरा विश्वास है।
नम्बर कोइ हो,लेकिन समाज के प्रति जिम्मेदारी से कोई नागरिक ईन्कार नही कर सकता।
आज जिस तरह से हम ठगे जा रहे है,जिस सम्मोहन में हमें जकड़ लिया गया है,उससे मुक्त होने के लिये,जो रास्ता हैउसे अपनाने के लिये हम तैयार ही नहीं है
एक साधारण बात जिसे गाॅधी ने बताया
बुरा मत देखो
बुरा मत सुनो
बुरा मत कहो
अगर ये तीनो  बात हम मानते तो ,नेताओं को देखने और सुनने वाली भीड़ गायब रहती
और बुरा कहने वाले नेता,केवल रेडियो
और टीबी का, सहारा, लेते,,,,

Tuesday, January 27, 2015

शिष्टाचार की चेतना

"शिष्टाचार की चेतना"
जिस चेतना के विषय में मैं आपसे कुछ कहने जा रहा हूॅ वह कोई नयी बात नहीं है।इस विषय पर समय-समय पर व्यापक बहस होती रहती है,लेकिन इसका प्रभाव श्मशान के प्रभाव की तरह,क्षणीक होता है।
श्मशान का प्रभाव वहॉ जाने वाले प्रत्येक व्यक्ति के अन्दर बैराग भाव उत्पन्न करता है"क्या रक्खा है,इस दुनिया में,सब छोड़ जाना है"लेकिन  थोड़ी ही देर बाद यह भाव समाप्त हो जाता है।
मैं शिष्टाचार के चेतना की बात कर रहा था,ऐसा इसलिये कि  इसके अभाव के चलते ही विभिन्न बुराईयों का जन्म होता है ।
शिष्टाचार की चेतना की, अगर सबसे बड़ी आवश्यकता है तो वह है,हमारे राजनेताओं को।
एक ओर ,जहॉ इन्हें अपने आचरण से समाज का मार्गदर्शन करना चाहिये था,वहीं पर ये अपने अशिष्ट व्यवहारों से  समाज को पथभ्रष्ट करने का काम कर रहे हैं।
संसद में,विधान सभा में,राज्य सभा में,अथवा जन सभा में,हर जगह शिष्टाचार का अभाव  हो गया है
एक दुसरे परआरोप प्रत्यारोप ही धर्म हो गया है,कोई किसी की बात को शान्ती से सुनने को तैयार ही नहीं है।
ऐसे में अगर मैं शिष्टाचार की चेतना जगाने की बात कर रहा हूॅ  तो क्या गलत है, फुटबाल के मैच मे फाऊल करने वाले को,रैफरी की बात न मानने वाले को मैच से बाहर कर दिया जाता है,उसी प्रकार ,शिष्टाचार तोड़ने वाले व्यक्ति का तिरस्कार किया जाना चाहिये,
शिष्टाचार की चेतना जागृत करने के लिये कठोर नियम बनाना अतिआवश्यक है।